एक और साउथ की फिल्म जो लम्बे समय तक साथ रहने वाली हे फिल्म की शुरुआत से ही डायरेक्टर ने कोशिश की हे की दर्शको के दिमाग से खेला जाए और उनको पूरी सफलता मिली हे कहानी का मुख्य किरदार हे विन्सेंट पेपे कहानी इस किरदार के इर्द गिर्द घुमती हे देखा जाए तो कहानी सब से पहले दिमाग में आती हे एक ऐसी कहानी जो अपनी सरलता से अपने आप को असाधारण बनाती हे कुछ भी अतिरिक्त नही लगता हे सब कुछ हो सकता हे यही लगा| कहने का मतलब हे कहानी की सबसे अच्छी बात इसकी वास्तविकता(realistic) हे हर एक द्रश्य चाहे वह एक्शन का हो या कॉमेडी का सब में वास्तविकता हे| सबसे ज्यादा पसंद आया करैक्टर रवि हे | इस फिल्म का छायांकन (cinematography) बहुत खूबसूरत हे 11 मिनट के क्लाइमेक्स को इतनी सरलता से एक शूट में पूरा किया हे तब लगा की हा ये बात बनी और जब बनी तो क्या कहे संगीत इस फिल्म का इतना अच्छा हे की पूरा जो बिल्डउप दिया गया हे हर एक द्रश्य में वो संगीत की बदौलत ही था एक्टिंग में कहने के लिए कुछ नही हे क्योकि इतनी बढ़िया एक्टिंग वो भी पूरी कास्ट के द्वारा बहुत सराहनीय हे निर्देशन इतना प्यारा हे की में किसी बारे में कुछ नेगेट
13/08/2017 सुबह जब अखबार का पहला पन्ना खोला तो देखा न्यूज़ थी 'ये हे जिनकी वजह से मरे गोरखपुर में मासूम' कम्पनी का नाम था आदमी का नाम और फोटो था साथ ही अन्य चीज़े और थी जेसे कितना कमाती हे कितने रुपयों के लिए बंद की वगेराह लिखा हुआ था खबर की पहली लाइन थी –‘अस्पताल,कम्पनी और सरकार कर रहे हे पेमेंट की बात ,पर ऑक्सीजन कभी रोकी नही जा सकती’ कुछ देर सोचा पर समझ नही आया अगर नही रोकी जा सकती तो रुकी केसे पर फिर थोडा आगे पढ़ा तो कोई डॉक्टर का नाम आया इतना पढ़ के जब दिमाग में उथल पुथल हुई तो अगला पन्ना देखा लिखा था ‘सरकार बोली-अगस्त में तो बच्चे मरते ही हे ,ऑक्सीजन वजह नही’ खुद की जन्मतिथि दिमाग में घूम गयी और प्रश्न हो उठा वाकई ? कुछ अन्दर पढने की कोशिश की गयी लिखा था एक मंत्री जी का बयान ‘कॉलेज में ओसतन 15-18 मौते रोज होती हे | ऑक्सीजन नही मिलने से मौत नही हुई बस इतना पढना शायद काफी था पूरा समझ आ गया की हा मौते केसे हुई हे वेसे पुरे देश को पता हे मौत केसे हुई उन 64 लोगो की पर फिर भी में आपको बता दू की केसे हुई इन मौतों का कारण हिंदुस्तान की मध्यम वर्गीय जनता ह