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Showing posts from August, 2017

अंगामली डायरीज़ (angamaly diaries)

एक और साउथ की फिल्म जो लम्बे समय तक साथ रहने वाली हे फिल्म की शुरुआत से ही डायरेक्टर ने कोशिश की हे की दर्शको के दिमाग से खेला जाए और उनको पूरी सफलता मिली हे कहानी का मुख्य किरदार हे विन्सेंट पेपे कहानी इस किरदार के इर्द गिर्द घुमती हे देखा जाए तो कहानी सब से पहले दिमाग में आती हे एक ऐसी कहानी जो अपनी सरलता से अपने आप को असाधारण बनाती हे कुछ भी अतिरिक्त नही लगता हे सब कुछ हो सकता हे यही लगा| कहने का मतलब हे कहानी की सबसे अच्छी बात इसकी वास्तविकता(realistic) हे हर एक द्रश्य चाहे वह एक्शन का हो या कॉमेडी का सब में वास्तविकता हे| सबसे ज्यादा पसंद आया करैक्टर रवि हे | इस फिल्म का छायांकन (cinematography)  बहुत खूबसूरत हे 11 मिनट के क्लाइमेक्स को इतनी सरलता से एक शूट में पूरा किया हे तब लगा की हा ये बात बनी और जब बनी तो क्या कहे संगीत इस फिल्म का इतना अच्छा हे की पूरा जो बिल्डउप दिया गया हे हर एक द्रश्य में वो संगीत की बदौलत ही था एक्टिंग में कहने के लिए कुछ नही हे क्योकि इतनी बढ़िया एक्टिंग वो भी पूरी कास्ट के द्वारा बहुत सराहनीय हे निर्देशन इतना प्यारा हे की में किसी बारे में कुछ नेगेट

जिंदा इंसान की खोज

13/08/2017 सुबह जब अखबार का पहला पन्ना खोला तो देखा न्यूज़ थी 'ये हे जिनकी वजह से मरे गोरखपुर में मासूम' कम्पनी का नाम था आदमी का नाम और फोटो था साथ ही अन्य चीज़े और थी जेसे कितना कमाती हे कितने रुपयों के लिए बंद की वगेराह लिखा हुआ था खबर की पहली लाइन थी –‘अस्पताल,कम्पनी और सरकार कर रहे हे पेमेंट की बात ,पर ऑक्सीजन कभी रोकी नही जा सकती’ कुछ देर सोचा पर समझ नही आया अगर नही रोकी जा सकती तो रुकी केसे पर फिर थोडा आगे पढ़ा तो कोई डॉक्टर का नाम आया इतना पढ़ के जब दिमाग में उथल पुथल हुई तो अगला पन्ना देखा लिखा था ‘सरकार बोली-अगस्त में तो बच्चे   मरते ही हे ,ऑक्सीजन वजह नही’ खुद की जन्मतिथि दिमाग में घूम गयी और प्रश्न हो उठा वाकई ? कुछ अन्दर पढने की कोशिश की गयी लिखा था एक मंत्री जी का बयान ‘कॉलेज में ओसतन 15-18 मौते रोज होती हे | ऑक्सीजन नही मिलने से मौत नही हुई बस इतना पढना शायद काफी था पूरा समझ आ गया की हा मौते केसे हुई हे वेसे पुरे देश को पता हे मौत केसे हुई उन 64 लोगो की पर फिर भी में आपको बता दू की केसे हुई इन मौतों का कारण हिंदुस्तान की मध्यम वर्गीय जनता ह

मानसरोवर

मानसरोवर एक ऐसी फिल्म जो आज से 12 साल पहले प्रदर्शित हुई एक ऐसी कहानी जो तीन किरदारों के बीच मे उलझी परन्तु सुलझी हुई है फ़िल्म का हर किरदार अपनी भूमिका को बढ़े अच्छे तरीके से निभाता नज़र आता है फ़िल्म में रवि(अतुल कुलकर्णी) और जॉर्ज (ज़फर) दोनों भाई है और एक लड़की मालथी(नेहा दुबे) है बढ़िया ढंग से प्रस्तुत की गई कहानी जिसमे रवि का किरदार बहुत प्रभावित करता है हर एक सीन में जान डालते हुए अतुल कुलकर्णी आपको अपने खूबसूरत अभिनय से मोह लेंगे हर एक जगह रवि को देख मुझे लगा कितना कुछ है जो वह देना चाहता है और दे रहा है एक हथिनी को जब अपनी जायदाद का पूरा हिस्सा दिया तो अहसास हुआ की रवि ने सब कुछ देना ही तो चाहा है एक दृश्य में जब रवि मालथी को समझाने की कोशिश करता है कि उसे एक मौका दिया जाए उस वक़्त लगा की में जाके कह दूं मालथी से की हा कर दो एक ओर दृश्य जहाँ रवि मालथी को एक तोता ओर एक बकरी तोहफे में देता है वहाँ सोचा कि को देता है ऐसा तोहफा पर कुछ ही पल बाद लगा कि ये ही तो प्यार है कुछ भोलापन होना कुछ मासूम होना सबसे पसंदीदा दृश्य है रवि जब झील में नहाने कूदता है तब एक एहसाह होता है कि यह